पर्यावरण प्रदूषण:

वायु प्रदुषणः
वायु विभिन्न प्रकार के गैसों का निश्चित मिश्रण प्राणदायक वायु (जीवनदायक हवा) कहलाती है। जिसमें 78 प्रतिशत नाइट्रोजन सार्वाधिक व 21 प्रतिशत आक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड पाया जाता है बाकी 0.97 प्रतिशत अन्य गैसे जैसे - हीलियम, आर्गन, नियान, क्रिटान, जेनान, आजोन एव जल वाष्प होता है वायु में गैसों की यही निश्चित मात्रा ही वायु को पृथ्वी पर मौजूद जीव-जंतुओ एव पेड़-पौधो के लिये जीवनदायनी होती है। वायु में गैसो के मात्रा का जरा भी अंतर स्वस्थ के लिये हानिकारक हो जाता है। अतः श्वसन के लिये आक्सीजन जरूरी होता है। जब कभी वायु में कार्बन डाई आक्साइड नाइट्रोजन के आक्साइडो की मात्रा में वृद्वि को ही वायु प्रदूषण कहा जाता है।
जल प्रदूषण:
जल प्रदूषण, से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के पानी के संदूषित होने से है। किसी भी जल में किसी भी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति जो किसी भी जल के स्वाभाविक गुण को परिवर्तित कर दे एवं स्वास्थ पशु पक्षी इत्यादि के लिये नुकसानदायक हो, जल प्रदूषण, कहलाता हैं। ऐसे जल निकाय पादपों और जीवों को प्रभावित करता है और सर्वदा यह प्रभाव न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है।
ध्वनि प्रदुषणः

ऊष्मीय प्रदूषण:
रेडियोधर्मी प्रदूषण ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ में जहाँ अनायास या अवांछनीय रेडियोधर्मी पदार्थ की उपस्थिति होती है, उसे रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। इसका प्रभाव पर्यावरण, जीव जन्तुओं और मनुष्यों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे लोगों की मृत्यु भी हो जाती है।
मिट्टी प्रदूषणः
बड़े पैमाने पर हुए औद्योगीकरण एंव नगरीकरण ने नगरों में बढ़ती जनसंख्या एवं निकलने वाले द्रव एंव ठोस अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी को प्रदूषित कर रहें हैं। ठोस कचरे के कारण आज भूमि में प्रदूषण अधिक फैल रहा है। ठोस कचरा प्रायरू घरों, मवेशी-गृहों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है।
प्रकाश प्रदूषणः-
प्रकाश प्रदूषण को दो मुख्य प्रकार में विभाजित किया जा सकता हैरू (1) कष्टप्रद प्रकाश जो अन्यथा प्राकृतिक या हल्की प्रकाश व्यवस्था में दखलंदाजी करता है और (2) अत्यधिक प्रकाश (आमतौर पर घर के भीतर) जो बेचैन करता है और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
धीरे-धीरे विश्व की जनसँख्या बढती चहली जा रही है जिसके कारण वनों की कटाई भी जोरो से हो रही है। इन बीते 10-15 वर्षों में वनों की कटाई के कारण, पृथ्वी में कई प्रकार के खतरनाक गैसीय उत्सर्जन हुए हैं।
No comments:
Post a Comment