आओ लिख दूँ कुछ ऐसा, धरती की रक्षा हो जैसा....
पाल पोस कर जिसने बड़ा किया ,
उसी को हमने रुसवा किया
लगे रहते हैं गिराने में सृष्टि का सम्मान
नहीं रखते हम ध्यान मॉं धरती का ध्यान ....
आज सभी लोग अपने अपने लिए खोद रहे पानी को गड्ढे (घर घर बोंरिग), यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले कल में हमे अपने लिये भी एक गड्डा (कब्रिस्तान) खोद के रखना चाहिए। क्योकि आज हम अधुनिकीकरण व विकास की दौड़ में जिस तेजी से बढ रहे है इस ग्रह पर प्रकृति का नामो निशान न होगा। हम केवल हरी भरी प्रकृति की कल्पना कर सकते है । आज हम लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते है केवल धन अर्जित करने का ही विचार मन में आता है हम कोई भी कार्य कर रहे होते है हमेशा हमारे मन में यही विचार कौलजा रहता है के इस कार्य से मुझो क्या फायदा। कितनी घिनौनी सोच होती जा रही है हमारी और हम लोग खुद को एक बेहतर समाजसेवी, शिक्षित, दानवीर और कुशल राजनैतिक मानते है परन्तु एक बात हमें नही भूलनी चाहिये कि हम मातदाताओ को तो बेवकूफ बना सकते है किन्तु प्रकृति का नही। और हम मनुष्यों की क्या औकात है कि जिस जननी घरती ने हमे सबकुछ दिया हम उसे कुछ दे नही सकते .....
जननी-धरती बड़ी दानी
न कोई भेद करे
सहेज लो इसको हाथो में
इसका सम्मान हमेशा रहे
एक रिर्पोट के अनुसार धरती पर कुल क्षेत्रफल का 33 % क्षेत्रफल वनों का होना चाहिए , लेकिन वर्तमान में हमारे देश का वनों का क्षेत्रफल मात्र 24.40% ही बचा है किन्तु आज हम सभी विकास के नाम पर केवल सड़क, बिजली, मकान, कारखाने व शिक्षा और नौकरी की करते है हमारे आस पास कोई नेता आज तक पर्यावरण या फिर प्रकृति सरक्षण की बात नही करता और ना ही भविष्य के बारे में सोचता है
क्यों करते हम उपेक्षा धरती की
धरती हमारी माँ समान
होगा तभी हम सबका कल्याण
बनाये इसे हरा भरा हम
गन्दे नाले कलकारखानों का गंदा पानी सब हम नदी में भूमिगत जल में छोड़ रहे है फिर कहते है पीने का पानी नही मिल रहा । सरकारी आकड़ो के अनुसार 2040 में भारत मे पीने का पानी खत्म हो जाएगा डेढ़ अरब की आबादी क्या पैकेज वाटर पी पाएगी i हककित से दूर हम बात कर रहे हैं
धरती पर सब कल्पना कर रहे हैं अगर आज भी नहीं सुधरे ना यकीन मानो हम विनाश की राह पर विनाश के बहुत करीब चल रहे हैं
अब तो यारो नासा के वैज्ञानिको ने भी माना की धरती पर कुछ ना कुछ बदलाव होने वाला है, यह भी माना कि इस बदलाव का बचाव मात्र पर्यावरण की रक्षा सुरक्षा संरक्षण करना ही उपाय है यकीन मानो हम विनाश की राह पर विनाश के बहुत करीब चल रहे हैं
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