Saturday, May 26, 2018

पृथ्वी पर दूसरा सबसे अधिक आक्सीजन छोडने वाला वृक्ष है बरगद का पेड़ आइये जानते है पर्यावरण व मानव समाज में इस वृक्ष के योगदान के बारे में 💢संदीप मौर्य💢



बरगद

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भारत का राष्ट्रीय पेड़  है। इस पेड़ को बहुत ही पवित्र पेड़ माना गया है। माना जाता है के बरगद के पेड़ पर देवी -देवता निवास करते हैं इसीलिए यह हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इस धर्म के लोग बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं। बरगद का पेड़ आकार में बहुत बड़ा विशालकाय (ळपंदज) पेड़ होता है। इस पेड़ पर टाहनीयों से लटकती हुई लम्बी जड़ें इसे बड़ा और आकर्षित बनाती हैं। इस पेड़ को वट के नाम से भी जाना जाता है। बरगद के पेड़ की उम्र हजारों सालों तक होती है।

बरगद का पेड़ बहुत ही घना पेड़ होता है जो ज्यादातर हरी पत्तियों और तनों से घिरा होता है। इस पेड़ की पत्तियां अंडाकार होती हैं। इस पेड़ की किसी टाहनी जा पत्ती को तोड़ने से इसमें दूध जैसा तरल पदार्थ निकलने लगता है। इसके इलावा बरगद के पेड़ की पत्तियां और फल से कई प्रकार की दवाईयां बनाई जाती हैं। बरगद के पेड़ के तने बहुत मजबूत होते हैं जितना पुराना बरगद का पेड़ होगा उतने ही ज्यादा बड़े इसके तने होंगे। पुराने समयों में मुनि -ऋषि बच्चों को ज्ञान देने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे ही देते थे।




धार्मिक महत्व -
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हिंदू धर्म में वट वृक्ष की बहुत महत्ता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिमूर्ति की तरह ही वट,पीपल व नीम को माना जाता है, अतःएव बरगद को ब्रह्मा समान माना जाता है। अनेक व्रत व त्यौहारों में वटवृक्ष की पूजा की जाती है।
पुराणों में ऐसी अनेक प्रतीकात्मक कथाएँ, प्रकृति, वनस्पति व देवताओं को लेकर मिलती हैं। जिस प्रकार अश्वत्थ अर्थात् पीपल को विष्णु का प्रतीक कहा गया, उसी प्रकार इस जटाधारी वट वृक्ष को साक्षात जटाधारी पशुपति शंकर का रूप मान लिया गया है।
स्कन्दपुराण में कहा गया है-
अश्वत्थरूपी विष्णुरू स्याद्वरूपी शिवो यतरू
अर्थात् पीपलरूपी वृक्ष भगवान विष्णु व जटारूपी वृक्ष भगवान शिव का मूर्तिमान स्वरूप हैं।



हमारे वातावरण में बरगद वृक्ष का महत्वः-

बरगद वृक्ष का हमारे वातावरण में विषेश महत्व है क्योंकि हमारी पृथ्वी पर पाया जाने वाला दूसरा बहुवर्षीय वृक्ष है जो हमारे वातावरण में पीपल के बाद अत्याधिक मात्रा में (व्2) आक्सीजन छोड़ता है। 

बरगद का वृक्ष! हमें शुद्ध हवा प्रदान करता है यह हमें भरपूर मात्रा में आक्सीजन देता है बरगद का पेड़ 20 घंटों से भी ज्यादा समय तक आक्सीजन छोड़ता है और अशुद्ध हवा को खींचता रहता है ! व पर्यावरण में संतुलन को बनाये रखने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


बरगद वृक्ष का हमारे जीवन में औषिधि महत्वः-

1. बरगद की ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

2. बरगद के दूध की बून्द आँखों में नित्य प्रतिदिन डालने से आँख का जाला खत्म हो जाता है।

3. बरगद की 8-10 कोंपलों को दही के साथ खाने से दस्त बंद हो जाते हैं।

4. लगभग 20-30 ग्राम बरगद के पेड़ की छाल लेकर जौकूट करें और उसे आधा लीटर पानी के साथ काढ़ा बना लें। जब चैथाई पानी शेष रह जाए तब उसे आग से उतारकर छाने और ठंडा होने पर पीयें। रोजाना 4-5 दिन तक सेवन से मधुमेह रोग कम हो जाता है। इसका प्रयोग सुबह-शाम करें।

5. 20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है।

6. 10 ग्राम बरगद की जटा के अंकुर को 100 मिलीलीटर गाय के दूध में पीसकर और छानकर दिन में 3 बार स्त्री को पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

7. 3 से 5 ग्राम बरगद की कोपलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम खाने से प्रमेह व प्रदर रोग खत्म होता है।

8. लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफेद होते हैं। प्रतिदिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।

9. पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों 10 ग्राम का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची 2-2 ग्राम का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

10. बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।

11. बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते हैं।

12. बवासीर, वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन, प्रमेह स्वप्नदोष आदि रोगों में बड़ का दूध अत्यंत लाभकारी है। प्रातः सूर्योदय के पूर्व वायुसेवन के लिए जाते समय 2-3 बताशे साथ में ले जाये । बड़ की कलि को तोड़कर एक-एक बताशे में बड़ के दूध की 4-5 बूंद टपकाकर खा जायें। धीरे-धीरे बड़ के दूध की मात्रा बढातें जायें। 8-10 दिन के बाद मात्रा कम करते हुए चालीस दिन यह प्रयोग करें।

13. बड़ का दूध दिल, दिमाग व जिगर को शक्ति प्रदान करता है एवं इसके प्रयोग से मूत्र रुकावट ( मूत्रकृच्छ ) में भी आराम होता है। इसके सेवन से रक्तप्रदर व खूनी बवासीर का रक्तस्राव बंद होता है। पैरों की एडियों में बड़ का दूध लगाने से वे नहीं फटती। चोट, मोच और गठिया रोग में इसकी सूजन पर इस दूध का लेप करने से बहुत आराम होता है।


14. बड़ की छाल का काढा बनाकर प्रतिदिन एक कप मात्रा में पीने से मधुमेह में फायदा होता है व शरीर में बल बढ़ता है।

15. इसके कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर कूट कर पीस लें। आधा लीटर पानी में एक चम्मच चूर्ण डालकर काढा करें। जब चैथाई पानी शेष बचे तब उतारकर छान लें और पिसी हुई मिश्री मिलाकर कुनकुना करके पियें। यह प्रयोग दिमागी शक्ति बढाता है व नजला-जुकाम ठीक करता है।




Sandeep Kumar Maurya 
President 
Oxyrich Envoirnment Welfare Foundation


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